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Aatma | Anju Sharma
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आत्मा | अंजू शर्मामैं सिर्फएक देह नहीं हूँ,देह के पिंजरे में कैदएक मुक्ति की कामना में लीनआत्मा हूँ,नृत्यरत हूँ निरंतर,बांधे हुए सलीके के घुँघरू,लौटा सकती हूँ मैं अब देवदूत को भीमेरे स्वर्ग की रचनामैं खुद करुँगी,मैं बेअसर हूँकिसी भी परिवर्तन से,उम्र के साथ कलपिंजरा तब्दील हो जायेगाझुर्रियों से भरेएक जर्जर खंडहर में,पर मैं उतार कर,समय की केंचुली,बन जाऊँगीचिर-यौवना,मैं बेअसर हूँउन बाजुओं में उभरी नसोंकी आकर्षण से,जो पिंजरे के मोह में बंधीघेरती हैं उसे,मैं अछूती हूँ,श्वांसों के उस स्पंदन सेजो सम्मोहित कर मुझेकैद करना चाहता हैअपने मोहपाश में,मैंने बांध लिया हैचाँद और सूरज कोअपने बैंगनी स्कार्फ में,जो अब नियत नहीं करेंगेमेरी दिनचर्या,और आसमान के सिरे खोलदिए हैं मैंने,अब मेरी उड़ान में कोईसीमा की बाधा नहीं है,विचरती हूँ मैंनिरंतर ब्रह्माण्ड मेंओढ़े हुए मुक्ति का लबादा,क्योंकि नियमों और अपेक्षाओंके आवरण टांग दिए हैं मैंनेकल्पवृक्ष पर.......

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