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Dada Ki Tasveer | Manglesh Dabral
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Dada Ki Tasveer | Manglesh Dabral

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दादा की तस्वीर | मंगलेश डबराल दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक़ नहीं थाया उन्हें समय नहीं मिलाउनकी सिर्फ़ एक तस्वीर गन्दी पुरानी दीवार पर टँगी हैवे शान्त और गम्भीर बैठे हैं।पानी से भरे हुए बादल की तरहदादा के बारे में इतना ही मालूम हैकि वे माँगनेवालों को भीख देते थेनींद में बेचैनी से करवट बदलते थेऔर सुबह उठकरबिस्तर की सिलवटें ठीक करते थेमैं तब बहुत छोटा थामैंने कभी उनका गुस्सा नहीं देखाउनका मामूलीपन नहीं देखातस्वीरें किसी मनुष्य की लाचारी नहीं बतलातींमाँ कहती है जब हमरात के विचित्र पशुओं से घिरे सो रहे होते हैंदादा इस तस्वीर में जागते रहते हैं।मैं अपने दादा जितना लम्बा नहीं हुआशान्त और गम्भीर नहीं हुआपर मुझमें कुछ है उनसे मिलता-जुलतावैसा ही क्रोध वैसा ही मामूलीपनमैं भी सर झुकाकर चलता हूँजीता हूँ अपने को एक तस्वीर के खाली फ्रेम मेंबैठे देखता हुआ।

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