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Ae Aurat | Nasira Sharma
Ae Aurat | Nasira Sharma

Ae Aurat | Nasira Sharma

00:02:36
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ऐ औरत! | नासिरा शर्मा जाड़े की इस बदली भरी शाम कोकहाँ जा रही हो पीठ दिखाते हुएठहरो  तो ज़रा!मुखड़ा तो देखूँ कि उस पर कितनी सिलवटें हैंथकन और भूख-प्यास कीसर पर उठाए यह सूखी लकड़ियों का गट्ठर कहाँ लेकर जा रही हो  इसे?तुम्हें नहीं पता है कि लकड़ी जलाना, धुआँ फैलाना, वायु को दूषित करनाअपराध है अपराध! गैस है, तेल है ,क्यों नहीं करतीं इस्तेमाल उसेतुम्हारी ग़रीबी, बेचारगी और बेकारी के दुखड़ों सेकुछ नहीं लेना देना है क़ानून कोबस इतना कहना है किजाड़े की ठिठुरी रात में,गरमाई लेते हुएरोटी सेंकने की ग़लती मत कर बैठनापेड़ कुछ कहें या न कहें  तुम्हें मगरइस अपराध पर, क़ानून पकड़ लेगा तुम्हेंयह दो हज़ार चौबीस हैबदलते समय के साथ चलो ,और पुराने रिश्तों से नाता तोड़ोसवाल मत करो कि बमों से निकलते बारूदधूल, धुएँ से पर्यावरण का नाश नहीं होतापेड़ों के कटने से गर्मी का क़हर नहीं टूटतायह छोटे मुँह और बड़ी बात होगी।

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