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Makaan Ke Upari Manzil Par | Gulzar
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Makaan Ke Upari Manzil Par | Gulzar

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मकान की ऊपरी मंज़िल पर | गुलज़ारवो कमरे बंद हैं कब सेजो चौबीस  सीढ़ियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जातीमकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहतावहाँ कमरों में, इतना याद है मुझकोखिलौने एक पुरानी टोकरी में भर के रखे थेबहुत से तो उठाने, फेंकने, रखने में चूरा हो गएवहाँ एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता थामेरा एक दोस्त था, तोता, वो रोज़ आता थाउसको एक हरी मिर्ची खिलाता थाउसी के सामने एक छत थी, जहाँ परएक मोर बैठा आसमां पर रात भरमीठे सितारे चुगता रहता थामेरे बच्चों ने वो देखा नहीं,वो नीचे की मंजिल पे रहते हैंजहाँ पर पियानो रखा है, पुराने पारसी स्टाइल काफ्रेज़र से ख़रीदा था, मगर कुछ बेसुरी आवाज़ें  करता हैकि उसकी रीड्स सारी हिल गयी हैं, सुरों के ऊपर दूसरे सुर चढ़ गए हैंउसी मंज़िल पे एक पुश्तैनी बैठक थीजहाँ पुरखों की तसवीरें लटकती थीमैं सीधा करता रहता था, हवा फिर टेढ़ा कर जातीबहु को मूछों वाले सारे पुरखे क्लीशे [Cliche] लगते थेमेरे बच्चों ने आख़िर उनको कीलों से उतारा, पुराने न्यूज़ पेपर मेंउन्हें महफूज़ कर के रख दिया थामेरा भांजा ले जाता है फिल्मो मेंकभी सेट पर लगाता है, किराया मिलता है उनसेमेरी मंज़िल पे मेरे सामनेमेहमानखाना है, मेरे पोते कभीअमरीका से आये तो रुकते हैंअलग साइज़ में आते हैं वो जितनी बार आतेहैं, ख़ुदा जाने वही आते हैं याहर बार कोई दूसरा आता हैवो एक कमरा जो पीछे की तरफ़ बंद है,जहाँ बत्ती नहीं जलती, वहाँ एकरोज़री रखी है, वो उससे महकता है,वहां वो दाई रहती थी कि जिसनेतीनों बच्चों को बड़ा करने मेंअपनी उम्र दे दी थी, मरी तो मैंनेदफनाया नहीं, महफूज़ करके रख दिया उसको.और उसके बाद एक दो सीढ़ियाँ हैं,नीचे तहखाने में जाती हैं,जहाँ ख़ामोशी रौशन है, सुकूनसोया हुआ है, बस इतनी सी पहलू मेंजगह रख कर, कि जब मैं सीढ़ियोंसे नीचे आऊँ तो उसी के पहलूमें बाज़ू पे सर रख कर सो जाऊँमकान की ऊपरी मंज़िल पर कोई नहीं रहता...

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