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Abbas Miyan | Neerav
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अब्बास मियाँ | नीरव पंद्रह बीघे की खेती अकेले संभालने वाले अब्बास मियाँ हमारे हरवाहे थेहम काका कहते थे उन्हेंहम सुनते बड़े हुए थे काका खानदानीशहनाई वादक थेअपने ज़माने में बहुत मशहूरदूर-दूर तक उनके सुरों की गूंज थीहमारे बाबा भी एक क़िस्सा बताते थेकाशी में काका को एक दफे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के सामनेशहनाई बजाने का मौका मिला थाऔर उस्ताद ने पीठ थपथपाकर कहा था -उसकी बड़ी नेमत है हुनरसंभालनाउसकी नेमत जितनी बड़ी थीउससे बड़ी थी उनकी घर-गृहस्थीऔर घर गृहस्थी से भी बड़ी थी उनकी पुश्तैनी दरिद्रतासो उन्हें रखनी पड़ी अपनी जान से भी प्रियशहनाईऔर करनी पड़ी हरवाहीबाद उसके कछ पुराने शौकिया लोग बुलाते रहे शादी-ब्याह  मेंकाका कोशहनाई बजवानेपर एक वक्त के बाद सहालग भी छट गयाहम छोटे थे तब इतना नहीं समझते थेलेकिन काका जब कहतेहमारे साथ ही हमारा ये खानदानी हुनर बिला जाएगातब हम भी उनकी तरह मलाल के किसी अंधेरे में खो जाते थेअच्छे से याद है बाबा का जब देहांत हुआ था काका ने उठाई थी शहनाईऔर माटी जब उठी तब छेड़ा था रागफिर क्या परिचित क्या अपरिचितसबके रूदन को समेट लिया था उन्होंने अपनी शहनाई मेंबादल भी बरसे थे बाबा की शवयात्रा मेंसबसे बड़ी थी उसकी नेमतलेकिन उससे भी बड़ा था कुछऐसी विदाई जिसमें सबकी आँख से पानी बरस रहा थाकाका बजा रहे थेन जाने कौनसा दुख

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