Login to make your Collection, Create Playlists and Favourite Songs

Login / Register
Aapke Liye | Ajay Durgyey
Aapke Liye | Ajay Durgyey

Aapke Liye | Ajay Durgyey

00:02:56
Report
आपके लिए | अजय दुर्ज्ञेय आप यहां से जाइये!आप जब मेरी कविताएँ सुनेंगेतो ऐसा लगेगा कि जैसेकोई दशरथ-मांझी पहाड़ परबजा रहा हो हथौडेमैं जब बोलूंगातो आपको लगेगा किमैं आपके कपड़े उतार रहा हूँ औरन केवल उतार रहा हूँ बल्किउन्हीं कपड़ों से अपनी विजय पताका बना रहा हूँमैं जब अपने हक़ की कविता पढ़ंगातो आपको लगेगा किछीन रहा हूँ आपकी गद्दी,छीन रहा हूँ आपका सिंहासन और इसी भय सेगलने लगेगीं आपकी हथेलियाँ, हड्डियाँ...आप शर्म का बुत भी नहीं बन पायेंगेमैं जब कविता पढूँगा तोउसे सुनने के लिए आपको कोसेंगे आपके पुरखेसंभव है कि आपके बच्चे भी आपको गालियाँ दें औरआप रह जाओ बिल्कुल अकेले - एक आत्मस्वीकृति औरएक चुल्लू भर पानी के साथ। मैं जब कविता पढ़ँगातो आपको लगेगा कि आपके चुल्लू में आया वह पानी भी,किसी और के श्रम का फल है। हॉँ! वह है-बस आप समझने में विफल हैं।और इसी बीच- कविताओं को सींच,मैं जब रहूँगा मूक- तब भी आपको लगेगा कि जैसेभरे दरबार, उतर गया है कोई शम्बूक-जो चुप तो है मगर जिसकी आँखों मेंतप है, प्रतिरोध है, अवज्ञा है। और जो बस यही पूछता हैकि वह कौन है? उसका अपराध क्या है? और मैं जब अपना अपराध पूछुँगातो आपको लगेगा कि आपके हाथों में पहना रहा हूँ हथकाड़ियाँऔर श्रीमान! सच तो यह है किआप यहाँ से जाइये या यहीं उपवास करिये यानंगे बदन लेट जाइये या कुछ भी करिये - मगर अब,जब तक यह जाति का पहाड़ रहेगा, किसी रूप में, एक इंच भी-मेरा हथौड़ा नहीं रुकेगा।

Aapke Liye | Ajay Durgyey

View more comments
View All Notifications