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Kavita Mein | Amita Prajapati
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Kavita Mein | Amita Prajapati

00:01:42
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कविता में | अमिता प्रजापतिकितना कुछ कह लेते हैंकविता मेंसोच लेते हैं कितना कुछप्रतीकों के गुलदस्तों मेंसजा लेते हैं विचारों के फूलकविता को बाँध कर स्केटर्स की तरहबह लेते हैं हम अपने समय से आगेवे जो रह गए हैं समय से पीछेउनका हाथ थामसाथ हो लेती है कविताज़िन्दगी जब बिखरती है माला के दानों-सी फ़र्श परकविता हो जाती है काग़ज़ का टुकड़ासम्भाल लेती है बिखरे दानों कोदुख और उदासी को हटा देती हैनींद की तरहताज़े और ठंडे पानी की तरहहो जाती है कविता

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